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भारत के दूसरे राष्ट्रपति ‘सर्वपल्ली राधाकृष्णन’ से जुड़े 21 रोचक तथ्य

21 interesting facts related to the second President of India 'Sarvepalli Radhakrishnan'

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। डॉक्टर राधाकृष्णन पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के कार्यकाल के दौरान भारत के पहले उप-राष्ट्रपति भी रहे। वो एक दार्शनिक भी थे जिन्होंने पश्चिमी विद्वानों के विचारों को भारतीय नज़रिए से पेश किया। वो एक प्रसिद्ध शिक्षक थे और उनकी याद में ही भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

आइए आपको डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन की कुछ अहम बातें बताते हैं-

1. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को एक ब्राह्मण परिवार में तमिलनाडु के तिरूतनी गांव में हुआ था। यह गांव चेन्नई से 64 किलोमीटर दूर स्थित है।

2. डॉक्टर राधाकृष्णन के पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। पिता वीरास्वामी गरीब परंतु पढ़े-लिखे थे और राजस्व विभाग (Revenue Department) में नौकरी करते थे।

3. कुल छह भाई-बहन होने के कारण डॉक्टर सर्वपल्ली के पिता बड़ी मुश्किल से परिवार का गुजारा कर पाते थे। पाँच भाइयों और एक बहन में सर्वपल्ली राधाकृष्णन दूसरे थे और इतने बड़े परिवार में उनका बचपन कुछ अभाव में ही बीता।

4. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 1896 तक के पहले 8 वर्ष तिरूतनी में ही बीते। इसके बाद उन्हें तिरूपति में 1896 से 1900 तक एक क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में भेजा गया। 1900 से 1904 तक उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई।

5. वेल्लूर के बाद उन्होंने ‘मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज’ में दाख़िला ले लिया। यहां से उन्होंने 1906 में ही दर्शनशास्त्र (Philosophy) में M.A. की डिग्री हासिल कर ली। मेधावी छात्र होने के कारण उन्हें अपने छात्र जीवन में लगातार छात्रवृत्तियां मिलती रहीं।

6. उस समय की प्रचलित परिपाटी के अनुसार ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह भी 16 वर्ष की कम आयु में दूर के रिश्ते की बहन सिवाकामू से के साथ हो गया। उस समय सिवाकामू की आयु मात्र 10 साल थी और उन्होंने विवाह के 3 वर्ष पश्चात ही अपने पति के साथ रहना शुरू किया।

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7. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और सिवाकामू ने 5 बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया। इकलौता बेटा सर्वपल्ली गोपाल आगे चलकर एक विख्यात इतिहासकार बना।

8. अप्रैल 1909 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के शिक्षक के तौर पर नियुक्त हुए। इसके बाद वो 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने जहां वे महाराजा कॉलेज, मैसूर में पढ़ाते थे।

9. मैसूर में रहते हुए उन्हें एक बार रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने का मौका मिला था। राधाकृष्णन टैगोर के विचारों से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने टैगोर के विचारों की अभिव्यक्ति हेतू ‘रवींद्रनाथ टैगोर का दर्शन’ नाम से एक पुस्तक लिखी।

10. 1921 में वो कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने। उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी को जून 1926 में Congress of the Universities of the British Empire में और सितंबर 1926 में अमेरिका की Harvard University में International Congress of Philosophy में represent किया था।

11. डॉक्टर राधाकृष्णन के शिक्षा के प्रति लगाव ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया। वो हमेशा कुछ नया सीखने के लिए उतारू रहते थे। विवेकानंद और वीर सावरकर को वो अपना परम आदर्श मानते थे।

12. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र पर ढेरों पुस्तकें लिखने के साथ-साथ अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से समूचे विश्व को भारतीय दर्शन से परिचित कराने का प्रयास भी किया। वो देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति थे।


13. शैक्षिक उपलब्धियों के कारण 1931 में डॉक्टर राधाकृष्णन को अंग्रेजों द्वारा नाइट की उपाधि की गई। उन्होंने इस उपाधि को देश की आज़ादी के बाद त्याग दिया और अपना academic title ‘Doctor’ अपने नाम के आगे लगाने लगे।

14. 1931 से लेकर 1936 तक सर्वपल्ली राधाकृष्णन आंध्र यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर रहे। 1939 में वो मदन मोहन मानवीय के आग्रह पर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर बने। वो इस पद पर जनवरी 1948 तक बने रहे।

15. डॉक्टर राधाकृष्णन भारत की संविधान सभा के सदस्य भी रहे और भारत के पहले उप-राष्ट्रपति चुने गए। इसके बाद वो 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति रहे।

16. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश की आज़ादी के बाद उच्च पदों पर आसीन होने वाले उन कुछ एक व्यक्तियों में से एक थे जिनका कांग्रेस में कोई बैकग्राउंड नहीं था और ना ही उन्होंने किसी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। वो केवल शिक्षा के प्रति अपनी लगन के कारण इस पद पर पहुँचे थे।

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17. प्रसिद्ध दार्शनिक बर्ट्रैंड रसल ने डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर कहा था – “यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है।”

18. 1962 में राष्ट्रपति बनने के बाद से उनका कार्यकाल देश के लिए चुनौतियों से भरपूर रहा। जहां देश 1962 में चीन से युद्ध हार गया तो वहीं दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु भी इसी समय हुई।

19. राष्ट्रपति बनने से पहले ही डॉक्टर सर्वपल्ली को 1954 में शिक्षा और राजनीति में योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

20. 1967 में राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह ऐलान किया कि वो दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं। पद से हटने के पश्चात वो 8 वर्षों तक जीवित रहे और 17 अप्रैल 1975 को 86 वर्ष की आयु में चेन्नई में उनका निधन हो गया।

21. डॉक्टर राधाकृष्णन को शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए याद किया जाता रहा। उनका जन्मदिन जहां भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा तो वहीं उनकी मृत्यु के पश्चात 1975 में अमेरिका की टेंपलटन फ़ाउंडेशन द्वारा टेंपलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वो पहले गैर-ईसाई व्यक्ति थे।

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